सरगुजा जिला के बारे में Surguja Chhattisgarh information जानकारियाँ

Surguja Chhattisgarh information सरगुजा भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ का एक जिला है। जिले का मुख्यालय अम्बिकापुर है। भारत देश के छत्तीसगढ राज्य के उत्तर-पूर्व भाग में आदिवासी बहुल जिला सरगुजा स्थित है। इस जिले के उत्तर में उत्तरप्रदेश राज्य की सीमा है, जबकी पूर्व में झारखंड राज्य है। जिले के दक्षिणी क्षेत्र में छत्तीसगढ का रायगढ, कोरबा एवं जशपुर जिला है, जबकी इसके पश्चिम में कोरिया जिला है।

Surguja Chhattisgarh information

सरगुजा जिला होने के साथ-साथ, एक मण्डल मुख्यालय भी है जिसके कारण इसके मुख्यालय अम्बिकापुर में डिवीज़नल कमिश्नर का कार्यालय भी स्थित है। अप्रैल 2008 में, छत्तीसगढ़ की तत्कालीन राज्य सरकार ने राजस्व प्रभाग प्रणाली में बदलाव करते हुए इसमें 4 राजस्व प्रभागों – सर्गुजा, बिलासपुर, रायपुर और बस्तर का गठन किया। राज्य सरकार ने 2013 में एक नए राजस्व प्रभाग दुर्ग का गठन किया। फिलहाल सरगुजा मण्डल में सर्गुजा, कोरिया, बलरामपुर, सूरजपुर और जशपुर नाम के 5 जिले शामिल हैं।

ऐतिहासिक रूप से सर्गुजा जिले का गठन 1951 में चांग भाखर, कोरिया और सर्गुजा नामक तीन सामंती राज्यों को मिलाकर किया गया था। चूंकि तत्कालीन सामंती राज्य-सर्गुजा तीनों सामंती राज्यों में सबसे बड़ा था, इसलिए नए गठित जिले का नाम सर्गुजा दिया गया। सर्गुजा जिला कई पहाड़ियों और पठार वाला क्षेत्र है जो इस जिले को एक विहंगम दृश्य प्रदान करते हैं। इस जिले की दो प्रमुख भौगोलिक विशेषताएँ मैनपाट (पठार) और जमीरपट हैं।

छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग में स्थित सरगुजा जिला क्षेत्रफल की दृष्टि से राज्य में पहला स्थान रखता है। सरगुजा जिले का कुल क्षेत्रफल 15,731.75 वर्ग कि.मी. है जो छत्तीसगढ़ राज्य के कुल क्षेत्रफल का 11.6% है। सरगुजा जिले का मुख्यालय अम्बिकापुर है जो इस जिले का सबसे बड़ा शहर या कस्बा भी है। अम्बिकापुर की कुल आबादी 4,31,834 है ( 2011 की जनगणना की अनुसार)। जबकि गोविंदपुर इस जिले का सबसे छोटा कस्बा है जिसकी आबादी 4392 व्यक्तियों की है (2011)।

जनगणना 2011 के अनुसार सरगुजा जिले की कुल साक्षरता दर 60 प्रतिशत है। इसमें पुरुष साक्षरता दर में पिछले एक दशक में 1.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और महिला साक्षरता दर में पिछले दशक के दौरान 8.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

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जिले के बारे में About District Sarguja

सरगुजा जिला छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तरी हिस्से में स्थित है। विभिन्न मंदिरों की पत्थर पत्थर की नक्काशी और पुरातन अवशेषों की उपस्थिति मसीह (बीसी) से पहले इस क्षेत्र के अस्तित्व के सबूत दिखाती है। 4 टीएच बीसी में मौर्य वंश के आगमन से पहले, यह क्षेत्र नंदा कबीले के भगवान में था। 3 बीसी से पहले इस क्षेत्र को अपने आप में झगड़ा करने के बाद छोटे हिस्सों और उनके सरदार में बांटा गया था। तब एक राजपूत राजा पालमू जिले (बिहार) में राक्षल कबीले से संबंधित है और उसके नियंत्रण में लिया गया।

1820 में अमर सिंह सरगुजा राज्य के राजा थे जिन्हें 1826 में “महाराजा” के रूप में ताज पहनाया गया था। 1882 में रघुनाथ शरण सिंह देव ने सरगुजा राज्य पर अपना नियंत्रण लिया था जिसे भगवान दफारी द्वारा “महाराजा” के रूप में सम्मानित किया गया था। भारत की समकालीन जीत के बाद उन्होंने सरगुजा की राजधानी अंबिकापुर में एडवर्ड मिडिल स्कूल, डाकघर, टेलीग्राफ कार्यालय, मेडिकल स्टोर, जेल और अदालतों की स्थापना की। प्रमुख आबादी में जनजातीय आबादी शामिल है। इन आदिम जनजातियों में से हैं पांडो और कोरवा, जो अभी भी जंगल में रह रहे हैं, पांडो जनजाति खुद को महाकाव्य महाभारत के “पांडव” वंश के सदस्य मानते हैं। कोरवा जनजाति महाभारत के “कौरव” के सदस्य होने का मानना ​​है।

जिले के लगभग 58% क्षेत्र वनों के नीचे स्थित है। नजुलुल और अन्य क्षेत्रों का वनस्पति मानव गतिविधियों के साथ अक्सर बदल रहा है और भूमि उपयोग जलवायु, मिट्टी और जैविक कारक प्राकृतिक वनस्पति के कार्य हैं। इन तीन जलवायु कारकों में से जिनमें मौसमी विविधता के साथ वर्षा, तापमान और उनके संयोजन भी शामिल हैं। जंगलों, बड़े और छोटे पेड़ों, झाड़ियों, पर्वतारोही, परजीवी इत्यादि के शानदार विकास में पर्याप्त नमी के परिणाम। सर्जुजा वर्षा में 100-200 सेमी, औसत वार्षिक तापमान 260 सी -270 सी और आर्द्रता 60-80% के परिणामस्वरूप मानसून पर्णपाती जंगलों के बीच भिन्न होता है। ऐसे जंगलों के पेड़ वसंत और गर्मियों की गर्मियों के दौरान अपनी पत्तियों को छोड़ देते हैं जब पानी का भंडारण अधिक तीव्र होता है। उप-मिट्टी के पानी की मेज में कटौती पर्याप्त नहीं है ताकि पेड़ों को साल भर अपनी पत्तियों को रखा जा सके। ये वन सबसे महत्वपूर्ण वन हैं, जो वाणिज्यिक लकड़ी और उच्च मूल्य के विभिन्न अन्य वन उत्पादों को उपलब्ध कराते हैं।

स्थिति

इस जिले का अक्षांशिय विस्तार 230 37′ 25″ से 240 6′ 17″ उत्तरी अक्षांश और देशांतरिय विस्तार 810 37′ 25″ से 840 4′ 40″ पूर्व देशांतर तक है। यह जिला भौतिक संरचना के रूप से विंध्याचल-बघेलखंड और छोटा नागपुर का अभिन्न अंग है। इस जिले की समुद्र सतह से उंचाई लगभग 609 मीटर है।

Sthapna == इस जिले की स्थापना 1 जनवरी 1948 को हुआ था जो 1 नवम्बर 1956 को मध्यप्रदेश राज्य के निर्माण के तहत मध्यप्रदेश में शामिल कर दिया गया। उसके बाद 25 मई 1998 को इस जिले का प्रथम प्रशासनिक विभाजन करके कोरिया जिला बनाया गया। जिसके बाद वर्तमान सरगुजा जिला का क्षेत्रफल 16359 वर्ग किलोमीटर है। 1 नवम्बर 2000 जब छत्तीसगढ राज्य मध्यप्रदेश से अलग हुआ तब सरगुजा जिले को छत्तीसगढ राज्य में शामिल कर दिया गया। वर्तमान में सरगुजा जिला पुनः दो और भागो में विभक्त हो गया है जिसमे नये जिले के रूप में जिला सुरजपुर और जिला बलरामपुर का निर्माण हुआ है।

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नामकरण

सरगुजा के इतिहास से हमे यह पता चलता है कि सरगुजा कईं नामों से जाना जाता रहा है। एक ओर जहां रामायण युग में इसे दंडकारण्य कहते थे, वहीं दूसरी ओर दसवीं शताब्दी में इसे डांडोर के नाम से जाना जाता था। यह कहना कठिन है कि इस अंचल का नाम सरगुजा कब और क्यों पडा? वास्तव में सरगुजा किसी एक स्थान विशेष का नाम नहीं है, बल्कि जिले के समूचे भू-भाग को ही सरगुजा कहा जाता है।

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार पूर्व काल में सरगुजा को नीचे दिये गये नाम से जाना जाता था:

सुरगुजा – सुर + गजा – अर्थात देवताओं एवं हाथियों वाली धरती।
स्वर्गजा – स्वर्ग + जा – स्वर्ग के समान भू-प्रदेश
सुरगुंजा – सुर + गुंजा – आदिवासियों के लोकगीतों का मधुर गुंजन।
वर्तमान में इस जिले को सरगुजा नाम से ही जाना जाता है। जिसका अंग्रेजी भाषा में उच्चारण आज भी SURGUJA ही हो रहा है।

जलवायु

जलवायु वह भौगोलिक अवस्था है जो समस्त स्थानिय दशाओं को प्रभावित करती है। सरगुजा जिला भारत के मध्य भाग में स्थित है जिसके कारण यहां कि जलवायु उष्ण-मानसुनी है। सरगुजा जिले में जलवायु मुख्यत: तीन ऋतु अवस्थाओं का होता है जो निम्नांकित है।

ग्रीष्म ऋतु

यह ऋतु मार्च से जुन माह तक होती है चुंकि कर्क रेखा जिला के मध्य में प्रतापपुर से होकर गुजरती है इस लिये गर्मीयों में सुर्य की किरणें यहां सीधे पड्ती है इस लिये यहां का तापमान गर्मीयों में उच्च रहता है। इस ऋतु में जिले के पठारी इलाकों में गर्मीयां शीतल एवम सुहावनी होती है। इस दौरान सरगुजा जिले के मैनपाट जिसे छ्त्तीशगढ के शिमला के नाम से भी जाना जाता है, का तापमान अपेक्षाकृत कम होता है जिससे वहां का मौसम भी सुहावना होता है

वर्षाऋतु

यह ऋतु जुलाई से अक्टुबर तक होती है जिले में जुलाई व अगस्त में सर्वाधिक वर्षा होती है। जिले के दक्षीणी क्षेत्र में वर्षा सर्वाधिक होती है। यहां की वर्षा मानसुनी प्रवृति की होती है

शीतऋतु

इस ऋतु की शुरुवात नवम्बर में होती है और फरवरी माह तक रहती है जनवरी यहां का सबसे ठंड का महिना होता है जिले के पहाडी इलाकों जैसे मैनपाट, सामरीपाट में तापमान 5 0 से कम चला जता है। कभी कभी इन इलाकों में पाला भी पड़ता है।

जिला प्रशासन

सरगुजा जिले में सबसे बड़ा प्रशासनिक अधिकारी जिलाधिकारी होता है। इस पद पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी होते हैं। सरगुजा जिले में कलेक्टर या जिलाधिकारी राज्य सरकार और लोगों के बीच की कड़ी के रूप में कार्य करता है। कलेक्टर जिले की सभी महत्वपूर्ण समितियों से भी जुड़ा होता है। उदाहरण के लिए जिला सलाहकार समिति की अध्यक्षता भी जिलाधिकारी के द्वारा होती है। जिले में कलेक्ट्रेट के संगठनात्मक गठन या सेट-अप को मोटे तौर पर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है, (i) भू-राजस्व, भूमि-अभिलेख सहित भूमि और अन्य संबद्ध मामले। (ii) कानून और व्यवस्था एवं (iii) विकास।

जिले का पुलिस अधीक्षक पुलिस विभाग का प्रमुख होता है और हमेशा भारतीय पुलिस सेवा का सदस्य होता है। भारतीय प्रशासनिक सेवा की ही तरह भारतीय पुलिस सेवा भी एक अखिल भारतीय सेवा है।

सरगुजा जिले में:

19 तहसील हैं
7 ब्लाक
296 पटवारी हलका
977 ग्राम पंचायत
1772 राजस्व ग्राम
27 पुलिस रिजर्व सेंटर
27 राजस्व सर्कल
3 पुलिस जिला
7 विकासखण्ड
8 विधानसभा क्षेत्र
2 अभयारण्य
दर्शनीय स्थल
यहां अनेक जल प्रपात हैं:-

चेन्द्रा ग्राम

अम्बिकापुर- रायगढ राजमार्ग़ पर 15 किमी की दूरी पर चेन्द्रा ग्राम स्थित है। इस ग्राम से उत्तर दिशा में तीन कि॰मी॰ की दूरी पर यह जल प्रपात स्थित हैं। इस जलप्रपात के पास ही वन विभाग का एक नर्सरी हैं, जहां विभिन्न प्रकार के पेड-पौधों को रोपित किया गया है। इस जल प्रपात में वर्ष भर पर्यटक प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद लेने आते हैं। यहां पर एक तितली पार्क भी विकसित किया जा रहा है।

रकसगण्डा जल प्रपात

ओडगी विकासखंड (सूरजपुर जिला) में बिहारपुर के निकट एवम् बलरामपुर जिला में( वाद्रफनगर विकासखंड) के बलंगी नामक स्थान के समीप स्थित रेहंद (रेणुका नदी) नदी पर्वत श्रृखला की उंचाई से गिरकर रकसगण्डा जल प्रपात का निर्माण करती है जिससे वहां एक संकरे कुंड का निर्माण होता हैं यह कुंड अत्यंत गहरा है एवम् अत्यंत दुर्लभ है यह जलप्रपात बलरामपुर एवम् सूरजपुर जिले को अलग करती है।

भेडिया पत्थर जल प्रपात

कुसमी चान्दो मार्ग पर तीस किमी की दूरी पर ईदरी ग्राम है। ईदरी ग्राम से तीन किमी जंगल के बीच भेडिया पत्थर नामक जलप्रपात है।

बेनगंगा जल प्रपात

कुसमी-सामरी मार्ग पर सामरीपाट के जमीरा ग्राम के पूर्व-दक्षिण कोण पर पर्वतीय शृंखला के बीच बेनगंगा नदी का उदगम स्थान है। यहाँ साल वृक्षो के समूह में एक शिवलिंग भी स्थापित है।

सेदम जल प्रपात

अम्बिकापुर- रायगढ़ मार्ग पर अम्बिकापुर से लगभग 37 कि.मी की दूरी पर सेदम नाम का गांव है। इसके दक्षिण दिशा में लगभग 2 कि॰मी॰ की दूरी पर पहाड़ियों के बीच एक सुन्दर झरना प्रवाहित होता है। यह जलप्रपात दलधोवा जलप्रपात के नाम से प्रसिद्ध है।

मैनपाट

मैनपाट अम्बिकापुर से 40 किलोमीटर दूरी पर अवस्थित है। इसे छत्तीसगढ का शिमला कहा जाता है। मैंनपाट विन्ध पर्वत माला पर स्थित है जिसकी समुद्र सतह से ऊंचाई 3781 फीट है। इसकी लम्बाई 28 किलोमीटर और चौड़ाई 10 से 13 किलोमीटर है।

काराबेल

काराबेल अम्बिकापुर से महज 51 कि.मी. की दूरी पर है। सामान्यतः काराबेल को मैनपाट का रायगढ़ रोड पर दाहिने ओर मुख्यद्वार के रूप में जाना जाता है। मैनपाट की ओर अम्बिकापुर से दरिमा-नावानगर रोड से होकर कमलेश्वरपुर (मैनपाट)भी निकटतम दूरी से जाया जा सकता है। यहां से मैनपाट 45 कि.मी. की दुरी पर है।

ठिनठिनी पत्थर

अम्बिकापुर नगर से 12 किलोमीटर की दूरी पर दरिमा हवाई अड्डा है। दरिमा हवाई अड्डा के पास बड़े – बड़े पत्थरों का समूह है। यहां ध्यान देने योग्य बात है कि सरगुजा में पत्थर को पखना कहा जाता है। इन पत्थरों को किसी ठोस चीज से ठोकने पर ठिन-ठिन की आवाजें आती हैं; इसलिए इन पत्थरों को यहां के जनमानस ने ठिनठिनी पखना नाम दिया है।

कैलाश गुफा

अम्बिकापुर नगर से पूर्व दिशा में 60 किलोमीटर पर स्थित सामरबार नामक स्थान है, जहां पर प्राकृतिक वन सुषमा के बीच कैलाश गुफा स्थित है।

तातापानी

अम्बिकापुर-रामानुजगंज मार्ग पर अम्बिकापुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर राजमार्ग से दो फलांग पश्चिम दिशा में एक गर्म जल स्रोत है। इस स्थान से आठ से दस गर्म जल के कुण्ड है।क्योंकि सरगुजा में गर्म वस्तु को ताता कहा है, इसलिए गर्म जल (पानी) के कारण इस स्थान का नाम तातापानी पड़ा है।

सारासौर

अम्बिकापुर – बनारस रोड पर 40 किलोमीटर पर भैंसामुडा स्थान हैं। भैंसामुडा से भैयाथान रोड पर 15 किलोमीटर की दूरी पर महान नदी के तट पर सारासौर नामक स्थान हैं।

बांक जल कुंड

अम्बिकापुर से भैयाथान से अस्सी कि.मी की दूरी पर ओडगी विकासखंड है, यहां से 15 किलोमीटर की दुरी पर पहाडियों की तलहटी में बांक ग्राम बसा है। इसी ग्राम के पास रिहन्द नदी वन विभाग के विश्राम गृह के पास अर्द्ध चन्द्राकार बहती हुई एक विशाल जल कुंड का निर्माण करती है। इसे ही बांक जल कुंड कहा जाता है। यह जल कुंड अत्यंत गहरा है, जिसमें मछलियां पाई जाती है। यहां वर्ष भर पर्यटक मछलियों का शिकार करने एवं घुमनें आते हैं।

पुरातात्विक स्थल

रामगढ़
मुख्य लेख: रामगढ़, सरगुजा
सरगुजा जिला के मुख्यालय अंबिकापुर के दक्षिण में लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर रामगिरी या रामगढ़ नाम का प्रसिद्ध पुरातात्विक अवशेष स्थित है। यह सरगुजा के एतिहासिक स्थलो में सबसे प्राचीन है। यह अम्बिकापुर- बिलासपुर मार्ग में स्थित है। इसे रामगिरि भी कहा जाता है। रामगढ़ मैं कई प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलते हैं। यहां पर सीता बेंगरा एंव विश्व का सबसे प्राचीनतम नाट्य शाला हैं। वनवास के समय श्री राम जी भी अपने भाई और पत्नी के साथ यहां कुछ समय बिताये थे, जिनके निशान आज भी यहां देखने को मिलते हैं। भारतीय साहित्य की अनुपम कृति कालीदास द्वारा रचित “मेघदूतम” की रचना भी इसी स्थान पर हुई है। इसका उल्लेख स्वयं महाकवि कालिदास ने मेघदूतम में किया है।

लक्ष्मणगढ

अम्बिकापुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर लक्ष्मणगढ स्थित है। यह स्थान अम्बिकापुर – बिलासपुर मार्ग पर महेशपुर से 03 किलोमीटर की दूरी पर है।

कंदरी प्राचीन मंदिर

अम्बिकापुर- कुसमी- सामरी मार्ग पर 140 किलोमीटर की दूरी पर कंदरी ग्राम स्थित है। यहां पुरातात्विक महत्व का एक विशाल प्राचीन मंदिर है। अनेक पर्वो पर यहां मेले का आयोजन होता रहता है।

अर्जुनगढ

अर्जुंनगढ स्थान शंकरगढ विकासखंड के जोकापाट के बीहड जंगल में स्थित है। यहां प्राचीन कीले का भग्नावेष दिखाई पड्ता है। एक स्थान पर प्राचीन लंबी ईंटो का घेराव है।

सीता लेखनी

सुरजपुर तहसील के ग्राम महुली के पास एक पहाडी पर शैल चित्रों के साथ ही साथ अस्पष्ट शंख लिपि की भी जानकारी मिली है। ग्रामीण जनता इस प्राचीनतम लिपि को “सीता लेखनी” कहती है।

डिपाडीह

डिपाडीह कनहर, सूर्या तथा गलफुला नदियों के संगम के किनारे बसा हुआ है। यह चारों ओर पहाडियों से घिरा मनोरम स्थान है। यहां चार पांच किलोमीटर के क्षेत्रफल में कई मन्दिरों के टिले है।

महेशपुर

महेश्पुर, उदयपुर से उत्तरी दिशा में 08 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उदयपुर से केदमा मार्ग पर जाना पड्ता है। इसके दर्शनीय स्थल प्राचीन शिव मंदिर (दसवीं शताब्दी), छेरिका देउर के विष्णु मंदिर (10वीं शताब्दी), तीर्थकर वृषभ नाथ प्रतीमा (8वीं शताब्दी), सिंहासन पर विराजमन तपस्वी, भगवान विष्णु-लक्ष्मी मूर्ति, नरसिंह अवतार, हिरण्यकश्यप को चीरना, मुंड टीला (प्रहलाद को गोद में लिए), स्कंधमाता, गंगा-जमुना की मूर्तिया, दर्पण देखती नायिका और 18 वाक्यो का शिलालेख हैं।

सतमहला

अम्बिकापुर के दक्षिण में लखनपुर से लगभग दस कि॰मी॰ की दूरी पर कलचा ग्राम स्थित है, यहीं पर सतमहला नामक स्थान है। यहां सात स्थानों पर भग्नावशेष है।

धार्मिक स्थल महामाया मन्दिर

सरगुजा जिले के मुख्यालय अम्बिकापुर के पूर्वी पहाडी पर प्राचिन महामाया देवी का मंदिर स्थित है। इन्ही महामाया या अम्बिका देवी के नाम पर जिला मुख्यालय का नामकरण अम्बिकापुर हुआ। एक मान्यता के अनुसार अम्बिकापुर स्थित महामाया मन्दिर में महामाया देवी का धड स्थित है। महामया मन्दिर स‍गुजा का सबसे प्रसिद्ध मन्दिर है।

तकिया, सरगुजा

अम्बिकापुर नगर के उतर-पूर्व छोर पर तकिया ग्राम स्थित है इसी ग्राम में बाबा मुराद शाह, बाबा मुहम्मद शाह और उन्ही के पैर की ओर एक छोटी मजार उनके तोते की है। हर वर्ष मई-जून महीने में यहां उर्स का आयोजन होता है, जिसमे देश भर के जानेमाने कव्वाल बुलाये जाते हैं। यहां पर सभी धर्म के एवं सम्प्रदाय के लोग एक जुट होते हैं मजार पर चादर चढाते हैं।

कुदरगढ

कुदरगढ सरगुजा जिले के भैयाथान के निकट एक पहाडी के शिखर पर स्थित है। यहां पर भगवती देवी का एक प्रसिद्ध मंदिर है, इस मंदिर के निकट तालाबों और एक किले का खंडहर है

पारदेश्वर शिव मंदिर, सरगुजा

पारदेश्वर शिव मंदिर प्रतापपुर विकास खण्ड् से डेढ किलोमीटर दक्षिण की ओर बनखेता में मिशन स्कूल के निकट नदी किनारे स्थापित है। इस शिव मंदिर में लगभग 21 किलो शुद्ध पारे की एक मात्र अनोखी “पारद शिवलिंग” स्थापित है।

शिवपुर, सरगुजा

अम्बिकापुर से प्रतापपुर की दूरी 45 किलोमीटर है। प्रतापपुर से 04 किलोमीटर दूरी पर शिवपुर ग्राम के पास एक पहाडी की तलहटी में अत्यंत मनोरम प्राकृतिक वातावरण में एक प्राचीन शिव मंदिर है।

बिलद्वार गुफा, सरगुजा

यह गुफा शिवपुर के निकट अम्बिकापुर से 30 min की दूरी पर है। इसमें अनेक प्राचीन मूर्तियां हैं। इसमें महान नामक एक नदी का पानी निकलता रहता है, वहीं इस नदी का उद्गम भी है। इस गुफा का दूसरा छोर महामाया मंदिर के निकट निकलता है।

देवगढ, सरगुजा

अम्बिकापुर से लखंनपुर 28 किलोमीटर की दूरी पर है एवं लखंनपुर से 10 किलोमीटर की दूरी पर देवगढ स्थित है। देवगढ प्राचीन काल में ऋषि यमदग्नि की साधना स्थलि रही है।

अभयारण्य

सेमरसोत अभयारण्य

1978 में स्थापित सेमरसोत अभयारण्य सरगुजा जिलें के पूर्वी वनमंडल में स्थित है। इसका क्षेत्रफल 430.361 वर्ग कि. मी. है। जिला मुख्यालय अम्बिकापुर से 58 कि॰मी॰ की दूरी पर यह बलरामपुर, राजपुर, प्रतापपुर विकास खंडों में विस्तृत है। अभयारण्य में सेंदुर, सेमरसोत, चेतना, तथा सासू नदियों का जल प्रवाहित होता है। अभयारण्य के अधिकांश क्षेत्र में सेमर सोत नदी बहती है इस लिए इसका नाम सेमरसोत पडा। इसका विस्तार पूर्व से पश्चिम 115 कि॰मी॰ और उत्तर से दक्षिण में 20 कि॰मी॰ है। यहां पर शेर, तेन्दुआ, सांभर, चीतल, नीलगाय, वार्किगडियर, चौसिंहा, चिंकरा, कोटरी जंगली कुत्ता, जंगली सुअर, भालू, मोर, बंदर, भेडियां आदि पाये जाते हैं।

तमोर पिंगला अभयारण्य

1978 में स्थापित अम्बिकापुर-वाराणसी राजमार्ग के 72 कि. मी. पर तमोर पिंगला अभयारण्य है जहां पर डांडकरवां बस स्टाप है। 22 कि॰मी॰ पश्चिम में रमकोला अभयारण्य परिक्षेत्र का मुख्यालय है। यह अभ्यारंय 608.52 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्रफल पर बनाया गया है जो वाड्रफनगर क्षेत्र उत्तरी सरगुजा वनमंडल में स्थित है। इसकी स्थापना 1978 में की गई। इसमें मुख्यत: शेर तेन्दुआ, सांभर, चीतल, नीलगाय, वर्किडियर, चिंकारा, गौर, जंगली सुअर, भालू, सोनकुत्ता, बंदर, खरगोश, गिंलहरी, सियार, नेवला, लोमडी, तीतर, बटेर, चमगादड, आदि मिलते हैं।

प्रसिद्ध व्यक्ति

स्व0 राजमोहनी देवी (समाज सुधारक)
इनका जन्म सरगुजा जिलें के प्रतापपुर विकासखण्ड के शारदापुर ग्राम में सन 1914 को हुआ था। इनका जीवन संघर्षमय था। इनका वास्तविक नाम रजमन बाई था। महात्मा गांधी से प्रेरित होकर इन्होनें सरगुजा जिलें एवं दुसरे राज्यों जैसे बिहार तथा उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती ग्रामों में समाज सुधार के लिये अपना संदेश लोगो तक पहुंचाया। उनका संदेश था- ” जीव हिंसा मत करों, शराब पीना छोड दो, मांस भक्षण मत करों, सन्मार्ग पर चलों, इसी में जीवन का सार है।” इन्हें सन 1986 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय समाज सेवा पुरुस्कार तथा 1989 में राष्ट्रपति द्वारा “पद्म श्री” पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था। 6 जनवरी 1994 को राजमोहनी देवी ने दुनिया को अलविदा कहा।

श्रीमती सोनाबाई रजवार (सिद्धहस्थ शिल्पी)

सरगुजा जिलें के मुख्यालय अम्बिकापुर से लगभग 28 किमी की दुरी पर अम्बिकापुर-बिलासपुर मार्ग पर लखनपुर स्थित है। इसके पास ग्राम पुहपुटरा में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सिद्धहस्थ शिल्पी श्रीमती सोनाबाई रजवार का निवास है। मिट्टी शिल्प के लिये इन्हें राष्ट्रपति पुरुस्कार, म0 प्र0 शासन का तुलसी सम्मान एवं शिल्प गुरु अवार्ड से सम्मानित किया गया है। इनके द्वारा बनाई गई मिट्टी की अनेक कलाकृतियों का प्रदर्शन देश एवं विदेशों में आयोजित कई प्रदर्शनियों में किया जा चुका है।

श्री राम कुमार वर्मा जी (सुप्रसिद्ध साहित्यकार व्यंग्यकार और हास्य कवि)

सरगुजा (surguja) जिले के अंबिकापुर (Ambikapur) नामक शहर के निवासी साहित्य रत्न श्री राम कुमार वर्मा जी ने 19 अप्रैल 1998 को सर्वोत्तम रचना के तहत दूरदर्शन भोपाल द्वारा प्रथम पुरस्कार स्वरूप गोल्ड मेडल व प्रमाण पत्र, महामहिम राष्ट्रपति महोदय श्री के आर नारायणन जी, महामहिम राष्ट्रपति महोदय डाक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम जी, माननीय प्रधानमंत्री महोदय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी, माननीय प्रधानमंत्री महोदय श्री मनमोहन सिंह जी सहित भारत वर्ष के चारो दिशाओं के महामहिम राज्यपाल महोदय और मुख्यमंत्रीजी से लिखित में शुभकामना और प्रशंसा पत्र प्राप्त कर जिले का मान बढ़ाया है। आपने सरगुजा के साहित्य को विश्व पटल पर अंकित करने में महत्त्वपुर्ण योगदान दिया है। आपको देश विदेश की नामी और प्रतिष्ठित संस्थाओ ने सम्मानित करते हुए विभिन्न अलंकरण और सम्मानोपाधि से सम्मानित किया है।

श्री श्रवण शर्मा (चित्रकार)

सरगुजा जिलें के मुख्यालय अम्बिकापुर के निवासी चित्रकार श्री श्रवण शर्मा ने अपनी मनमोहक चित्रकारी से इस जिलें को गौरवांवित किया हैं। इनके द्वारा सरगुजा जिलें के प्राकृतिक सौन्दर्य, ग्रामीणों का जीवन इत्यादि विषयों पर कई चित्र बनाया गया है। अब तक इनके द्वारा हजारों पेंटिग्स एवं रेखाचित्रों का सृजन किया जा चुका है। “अकाल और रोटी” चित्र के लिये इन्हें भारत सरकार से सम्मानित भी किया जा चुका है।

सरगुजा जिले को गौरवांवित करने वाले और भी कई व्यक्ति हैं जिन्होनें अपनी प्रतिभा से कुछ ऐसा कार्य किया जिससे इस जिले का नाम रोशन हुआ।

कैसे पहुंचें

प्रकृति ने सरगुजा जिलें को विभिन्न प्रकार के वनों, सरोवरों, नदियों, पहाड इत्यादि से इस प्रकार परिपूर्ण किया है कि आप इस पावन धरती पर जरुर आना चाहेंगे। इसी धरती पर जहां एक ओर महाकवि कालीदास नें अपने सुप्रसिध महाकाव्य ‘मेघदुत’ की रचना की थी, वहीं दुसरी ओर भगवान राम, सीता माता और भाई लक्ष्मण सहित यहां वनवास के कुछ दिन काटे थे। सरगुजा जिला सडक एवं रेल मार्ग से सीधे जुडा हुआ है।

सडक मार्ग
छत्तीसगढ राज्य में :

रायपुर से अम्बिकापुर (जिला मुख्यालय) – 358 किमी
बिलासपुर से अम्बिकापुर- 230 किमी
रायगढ से अम्बिकापुर- 210 किमी
मध्यप्रदेश राज्य में: अनुपपुर से अम्बिकापुर – 205 किमी
उत्तरप्रदेश राज्य में: वाराणसी से अम्बिकापुर – 350 किमी
झारखंड राज्य में: रांची से अम्बिकापुर – 368 किमी
उडीसा राज्य में: झारसुगुडा से अम्बिकापुर- 415 किमी
रेल मार्ग
सरगुजा जिला मुख्यालय अम्बिकापुर 03 जून 2006 से रेल मार्ग से जुड गया है। अम्बिकापुर शहर के मुख्य मार्ग देवीगंज रोड पर स्थित गांधी चौक से रेल्वे स्टेशन की दुरी लगभग 5 किमी है। यहां से टैम्पो, टैक्सी इत्यादी से अम्बिकापुर शहर आया जा सकता है। आप निम्न ट्रेंन रुट का प्रयोग अम्बिकापुर आने के लिये कर सकते है:

नई दिल्ली से अनुपपुर >> अनुपपुर से अम्बिकापुर
मुंबई से बिलासपुर >> बिलासपुर से अम्बिकापुर
चेन्नई से बिलासपुर >> बिलासपुर से अम्बिकापुर
कोलकाता से रायगढ >> रायगढ से अम्बिकापुर
बिलासपुर से अम्बिकापुर आने के लिये बस और ट्रेंन दोनो का प्रयोग किया जा सकता है। बस अम्बिकापुर तक सीधे आती है जबकी ट्रेंन अनुपपुर (मध्यप्रदेश) होतें हुये अम्बिकापुर तक आती है। रायगढ से अम्बिकापुर आने के लिये बस की सुविधा ही उपलब्ध है।

वायु मार्ग:
अम्बिकापुर सीधे आने के लिये वायु मार्ग उपलब्ध नहीं है, आप रायपुर तक देश के निम्न स्थानों से वायु मार्ग से आ सकते है, उसके बाद रायपुर से अम्बिकापुर आने के लिये बस का प्रयोग करना होगा:

नई दिल्ली से रायपुर
मुंबई से रायपुर
चेन्नई से रायपुर
कोलकाता से रायपुर
नागपुर से रायपुर
रांची से रायपुर

सरगुजा में घूमने की जगह
Sarguja me ghumne ki jagah

मैनपाट सरगुजा – Mainpat Surguja
मैनपाट सरगुजा जिले का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है। यह पूरा पहाड़ी एरिया में स्थित है। यहां पर घूमने के लिए बहुत सारी जगह है। मैनपाट सरगुजा के मुख्यालय अंबिकापुर से करीब 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह विंध्य पर्वतमाला पर स्थित है। मैनपाट की समुद्र तल से ऊंचाई 3781 फीट है। मैनपाट प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ है। मैनपाट को छत्तीसगढ़ का तिब्बत भी कहा जाता है, क्योंकि यहां पर आप तिब्बती लोगों का बौद्ध मंदिर देख सकते हैं, जो बहुत ही सुंदर है और यहां पर आप तिब्बती लोगों का रहन सहन भी देख सकते हैं। मैनपाट में तिब्बती लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। मैनपाट में घूमने के लिए बहुत सारी जगह है। यह सारी जगह बहुत सुंदर है।

मैनपाट में घूमने की जगह
मछली प्वाइंट मैनपाट
जलपरी पॉइंट
जलजली मैनपाट
तिब्बत मंदिर मैनपाट
उल्टा पानी मैनपाट
प्रांजल व्यू प्वाइंट मैनपाट
टाइगर हिल मैनपाट
सनसेट पॉइंट मैनपाट
मेहता पॉइंट मैनपाट
पुरानी तिब्बती बुद्धिस्ट मॉनेस्ट्री मैनपाट
हॉर्टिकल्चर गार्डन मैनपाट

घुनघुट्टा बांध सरगुजा – Ghunghutta Dam Surguja
घुनघुट्टा बांध सरगुजा जिले का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह एक सुंदर जलाशय है। यह जलाशय सरगुजा जिले में लिब्रा गांव में स्थित है। इस बांध में आप आ कर नौकायन का भी मजा ले सकते हैं। यहां पर नौकायान की सुविधा उपलब्ध है। यहां पर आप नहाने का भी मजा ले सकते हैं। आप यहां पर आकर पिकनिक मना सकते हैं। यह बांध सरगुजा जिले के मुख्यालय अंबिकापुर से करीब 17 किलोमीटर दूर है।

घुनघुट्टा बांध में आठ गेट है। बरसात के समय जब घुनघुट्टा बांध पानी से पूरी तरह भर जाता है और इसका पानी ओवरफ्लो होकर बहता है, तो इसके गेट खोले जाते हैं। जिसका दृश्य बहुत ही शानदार रहता है। यहां पर आपको दूर-दूर तक पानी का सुंदर दृश्य देखने के लिए मिल जाता है। शाम के समय यहां पर आपको सूर्यास्त का दृश्य देखने के लिए मिलता है, जो बहुत ही मनोरम रहता है। आप यहां पर फैमिली वालों के साथ और दोस्तों के साथ घूमने के लिए आ सकते हैं।

ठिनठिनी पत्थर सरगुजा – Thinthini patthar sarguja
ठिनठिनी पत्थर सरगुजा का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह एक अनोखी जगह है। यहां पर आपको प्रकृति का एक अजूबा देखने के लिए मिलेगा। यहां पर एक बड़ी सी चट्टान है। इस चट्टान में आप दूसरे छोटे से पत्थर से चोट करेंगे, तो आपको यहां पर धातु के बजनों की धुन सुनाई देगी। मतलब आप इस चट्टान पर किसी अन्य छोटी चट्टान से मारेंगे, तो आपको लगेगा कि इससे धातु के बजने की आवाज आ रही है। यह एक विशेष प्रकार का पत्थर है और यह छत्तीसगढ़ में अंबिकापुर सरगुजा जिले में पाया जाता है और यहां पर आप आकर इस चीज का अनुभव कर सकते हैं, जो बहुत ही अचंभे में डालने वाली रहती है।

ठिनठिनी पत्थर सरगुजा जिले में दारिमा एयरपोर्ट के पास स्थित है। यहां पर आप बाइक या कार से आराम से पहुंच सकते हैं। यहां पर आपको हनुमान जी का एक मंदिर भी देखने के लिए मिलता है।

घाघी जलप्रपात अंबिकापुर – Ghaghi Falls Ambikapur
घाघी जलप्रपात अंबिकापुर का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह जलप्रपात घने जंगलों के अंदर स्थित है। यह जलप्रपात बहुत सुंदर है। यहां पर चेक डैम बना हुआ है। जब यहां से पानी ओवरफ्लो होता है। तब यह जलप्रपात देखने के लिए मिलता है। यहां पर पानी चट्टानों के ऊपर से बहता है, जिसका दृश्य बहुत ही आकर्षक रहता है।

घाघी जलप्रपात अंबिकापुर से मैनपाट जाने वाले सड़क के पास स्थित है। जलप्रपात में पहुंचने के लिए आपको जंगल की तरफ अंदर जाना पड़ता है। नवपाड़ा कालान के पास से आपको जंगल की तरफ मुड़ना पड़ता है और थोड़ी दूर कच्चे रास्ते में चलते हुए आप इस जलप्रपात तक पहुंच जाते हैं। यह जलप्रपात खासतौर पर बरसात में बहुत ही सुंदर रहता है, क्योंकि जलप्रपात में पानी की बहुत ज्यादा मात्रा रहती है और चारों तरफ हरियाली भरा माहौल रहता है। आप यहां पर आ कर पिकनिक मना सकते हैं।

पंचधारा जलप्रपात सरगुजा – Panchdhara Falls Surguja
पंचधारा जलप्रपात सरगुजा का एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल है। यह जलप्रपात घने जंगलों के अंदर स्थित है। यह जलप्रपात बरसात के समय देखने के लिए मिलता है। यहां पर ऊंची ऊंची पहाड़ियों से पानी नीचे कुंड में गिरता है, जो बहुत सुंदर लगता है। यह जलप्रपात अंबिकापुर के पास नान दामाली गांव के पास स्थित है। आप यहां पर आकर अपना बहुत अच्छा समय बिता सकते हैं।

सीताबेंगरा गुफा एवं जोगीमारा गुफा सरगुजा – Sitabengra Cave and Jogimara Cave Surguja
सीता बेंगरा गुफा एवं जोगीमारा गुफा सरगुजा का एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। यहां पर आपको प्राकृतिक गुफा देखने के लिए मिलती है। यह गुफाएं घने जंगलों के अंदर स्थित है। यह गुफाएं सरगुजा जिले में उदयपुर तहसील में रामगढ़ पहाड़ी पर स्थित है। आप यहां पर घूमने के लिए आ सकते हैं। यहां पर सीताबेंगरा गुफा और जोगीमारा गुफा है। यह गुफा पूरी तरह पत्थर से बनी हुई है। यह गुफाएं लघु आकार की हैं और इन गुफाओं में सीढ़ियों से पहुंचा जा सकता है। इनका भू विन्यास आयताकार है। सीताबेंगरा गुफा 14 मीटर लंबी, 5 मीटर चौड़ी और 1.8 मीटर ऊंची है। गुफा के सामने अर्धचंद्राकार पत्थर का बना हुआ बेंच का निर्माण किया गया है। गुफा के पूर्वी दीवाल पर अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि से लिखा हुआ अभिलेख देखने के लिए मिलता है।

जोगीमारा गुफा सीता बेंगरा गुफा से छोटी है। इस गुफा की लंबाई 3 मीटर, चौड़ाई 1.8 मीटर और ऊंचाई 1.8 मीटर है। इस गुफा के अंदर विभिन्न तरह के चित्र देखने के लिए मिलती है। इस गुफा में नृत्य समूह, फूलदार पौधे, मत्स्य और पशु समूह आदि के चित्र देखने के लिए मिलते हैं। यहां पर तीसरी और दूसरी शताब्दी के ब्राह्मी लिपि के अभिलेख भी है। यहां पर और भी जगह मौजूद है, जो देखने लायक हैं। यहां पर आपको श्री राम वन गमन मार्ग देखने के लिए मिल जाता है। यहां पर राम जानकी मंदिर है। यहां पर एशिया की पहली नाट्यशाला है। यहां पर महाकवि कालिदास जी का रचना स्थल है। यह सभी जगह बहुत सुंदर है। यह सरगुजा में घूमने लायक एक मुख्य स्थल है। आप यहां पर आकर अपना बहुत अच्छा समय बिता सकते हैं।

शिव मंदिर महेशपुर सरगुजा – Shiv Mandir Maheshpur Surguja
शिव मंदिर सरगुजा में स्थित एक प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर सरगुजा जिला में महेशपुर गांव के पास रिहंद नदी के किनारे बना हुआ है। यहां पर रिहंद नदी का सुंदर दृश्य देख सकते हैं। साथ ही साथ आपको शिव जी का प्राचीन मंदिर देखने के लिए मिलता है। मगर यहां पर शिव भगवान जी के मंदिर के अब भग्नावशेष ही आपको देखने के लिए मिलते हैं। यहां पर आपको पत्थरों से बना प्राचीन मंदिर देखने के लिए मिलता है। इस मंदिर की दीवारों में सुंदर मूर्ति कला देखने के लिए मिलती है। मंदिर के परिसर में चारों तरफ बहुत सारे मूर्तियों और मंदिरों के अवशेष देखने के लिए मिल जाते हैं। गर्भ ग्रह में शिवलिंग विराजमान हैं। आप यहां पर बरसात के समय आएंगे, तो आपको अच्छा लगेगा।

संजय वन वाटिका अंबिकापुर – Sanjay Van Vatika Ambikapur
संजय वन वाटिका अंबिकापुर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। संजय वन वाटिका को संजय पार्क के नाम से भी जाना जाता है। यहां पार्क अंबिकापुर के वन क्षेत्र में स्थित है। यहां पर आपको हिरण और मोर देखने के लिए मिल जाते हैं। यहां पर सुबह के समय योगा किया जाता है। यहां पर टॉय ट्रेन है, जिसमें बच्चे लोग बहुत इंजॉय कर सकते हैं। यहां चारों तरफ हरियाली है। यह झूले हैं, जिसमें सभी लोग इंजॉय कर सकते हैं। यहां पर बहुत सारे पक्षियों को रखा गया है, जिन्हें आप देख सकते हैं। यहां पर बहुत सारे जानवरों के स्टेचू देखने के लिए मिल जाते हैं और यह बहुत से स्टेचू ग्रामीण वस्तुओं से संबंधित है। यहां पर व्यायामशाला है। जहां पर आप कसरत भी कर सकते हैं।

यहां वन औषधि संग्रहालय है, जहां पर आप को विभिन्न प्रकार की औषधि के बारे में जानकारी मिल जाती है। यहां पर तालाब भी है, जहां पर विभिन्न प्रकार की मछलियां देखने के लिए मिल जाती है। यहां पर आप वन्य प्राणियों को गोद ले सकते हैं और उनका पालन पोषण भी कर सकते हैं। इसके लिए आपको यहां पर मैनेजमेंट से बात करनी पड़ती है। यहां पर आप अपना बहुत अच्छा समय बिता सकते हैं।

जिला पुरातत्व संग्रहालय अंबिकापुर – District Archaeological Museum Ambikapur
जिला पुरातत्व संग्रहालय सरगुजा जिले का एक मुख्य आकर्षण स्थल है। यहां पर आपको विभिन्न तरह की वस्तुओं का संग्रह देखने के लिए मिल जाता है। यहां पर अलग-अलग गैलरी में अलग-अलग वस्तुओं को संग्रह करके रखा गया है। यहां पर आपको मिनिएचर वस्तुओं का बहुत अच्छा संग्रह देखने के लिए मिल जाता है। यहां पर मिट्टी से बनी हुई बहुत सारी वस्तुएं भी देखने के लिए मिलती हैं। यह संग्रहालय सरगुजा जिले में प्रतापपुर रोड में स्थित है। आप यहां पर आसानी से पहुंच सकते हैं, क्योंकि यह मुख्य सड़क पर स्थित है।

मरीन ड्राइव पार्क अंबिकापुर – Marine Drive Park Ambikapur
मरीन ड्राइव पार्क सरगुजा का एक प्रमुख स्थल है। यह सरगुजा जिले के मुख्यालय अंबिकापुर के बीचो-बीच स्थित है। यहां पर आपको एक झील देखने के लिए मिलती है। झील के बीच में एक मंदिर बना हुआ है। मंदिर में जाने के लिए पुल बना हुआ है। यहां पर गार्डन भी बना हुआ है, जहां पर आप बैठ कर अपना अच्छा समय बिता सकते हैं। यहां पर बहुत सारे सेल्फी प्वाइंट है, जहां से आप अपनी अच्छी तस्वीर खींच सकते हैं। यह अंबिकापुर में घूमने के लिए एक मुख्य जगह है।

मां महामाया मंदिर अंबिकापुर – Maa Mahamaya Temple Ambikapur
मां महामाया मंदिर अंबिकापुर का एक प्रमुख मंदिर है। यह एक धार्मिक स्थल है। यह मंदिर मा महामाया को समर्पित है। मां महामाया सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती है। इसलिए लोग यहां पर माता के दर्शन करने आते हैं और अपनी मनोकामना मांगने आते हैं। यह मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। मंदिर परिसर में बरगद का एक बड़ा सा पेड़ भी लगा हुआ है। मंदिर के गर्भ गृह में मां महामाया की बहुत ही भव्य मूर्ति देखने के लिए मिलती है, जो आभूषणों और फूल मालाओं से सजी हुई है। यहां पर आकर बहुत शांति मिलती है। नवरात्रि के समय यहां पर बहुत भीड़ रहती है।

बांकी बांध अंबिकापुर – Banki Dam Ambikapur
बांकी बांध अंबिकापुर में स्थित एक सुंदर जलाशय है। यह जलाशय अंबिकापुर में खैरवार में स्थित है। आप यहां पर घूमने के लिए आ सकते हैं। यह जलाशय चारों तरफ से पहाड़ियों और जंगलों से घिरा हुआ है। यहां पर बरसात के समय अच्छा लगता है। आप यहां पर आकर पिकनिक बना सकते हैं।

सेदम जलप्रपात अंबिकापुर – Sedam Falls Ambikapur
सेदम जलप्रपात अंबिकापुर का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह एक सुंदर झरना है। यह झरना अंबिकापुर से करीब 44 किलोमीटर की दूरी पर सीतापुर वन क्षेत्र में स्थित है। यह सेदम नाम के गांव में से थोड़ी दूरी पर स्थित है। यह झरना बहुत सुंदर है। यह झरना जंगल के बीच में स्थित है और बहुत ही शानदार लगता है। पहाड़ों के बीच से बहता हुआ पानी का दृश्य बहुत ही आकर्षक रहता है। यहां पर साल भर लोग घूमने के लिए आते हैं। यहां पर वॉच टावर बना हुआ है, जहां से झरने का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है। झरने में आप नहाने का भी मजा ले सकते हैं। यहां पर एक शिव मंदिर है। शिवरात्रि के समय यहां पर मेला लगता है। आप बरसात के समय सेदम झरना घूमने के लिए आ सकते हैं।

कुवरपुर डैम सरगुजा – Kuwarpur Dam Surguja
कुवरपुर बांध सरगुजा का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह एक सुंदर जलाशय है। यह जलाशय बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। यह जलाशय मुख्य रूप से सिंचाई के उद्देश्य से बनाया हुआ है। यहां पर चारों तरफ हरियाली है। आप यहां पर बरसात के समय घूमने आएंगे, तो आपको बहुत सुंदर दृश्य देखने के लिए मिलेगा। यहां पर आप अपना अच्छा समय बिता सकते हैं और पिकनिक के लिए आ सकते हैं। यह बांध सरगुजा के लखनपुर तहसील में स्थित है।

सरगुजा जिला का प्रमुख आकर्षण स्थल एवं पिकनिक स्थल – Major attractions and picnic spots of Surguja district

पिल्खा पहाड़ और झील अंबिकापुर
प्राचीन काली मंदिर लुचकी घाट अंबिकापुर
ऑक्सीजन पार्क अंबिकापुर
पुष्प वाटिका अंबिकापुर
बंकीपुर बांध अंबिकापुर
बड़ा दामाली अंबिकापुर

छत्तीसगढ़ के पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल
Part (1)
Archeology and tourist sites in Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ पर्यटन स्थल
भारत के हृदय में स्थित छत्तीसगढ़ में समृद्ध सांस्कृतिक पंरपरा और आकर्षक प्राकृतिक विविधता है।
राज्य में प्राचीन स्मारक, दुर्लभ वन्यजीव, नक़्क़ाशीदार मंदिर, बौद्धस्थल, महल जल-प्रपात, पर्वतीय पठार, रॉक पेंटिंग और गुफाएं हैं।
बस्तर अपनी अनोखी सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान के साथ पर्यटकों को एक नई ताजगी प्रदान करता हो।
बिलासपुर में रतनपुर का महामाया मंदिर, डूंगरगढ में बंबलेश्वरी देवी मंदिर, दन्तेवाड़ा में दंतेश्वरी देवी मंदिर और छठी से दसवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र रहा सिरपुर भी महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं।
महाप्रभु वल्लभाचार्य का जन्मस्थान चंपारण, खूटाघाट जल प्रपात, मल्लाहार में डिंडनेश्वरी देवी मंदिर, अचानकमार अभयारण्य, रायपुर के पास उदंति अभयारण्य, कोरबा ज़िले में पाली और कंडई जल प्रपात भी पर्यटकों के मनपसंद स्थल हैं।
खरोड जंजगीर चंपा का साबरी मंदिर, शिवरीनारायण का नरनारायण मंदिर, रजिम का राजीव लोचन और कुलेश्वर मंदिर, सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर और जंजगीर का विष्णु मंदिर महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में हैं।

सरगुजा जिला के पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल

रामगढ (सरगुजा)

रामगढ़ पहाड़ी
रामगढ़ सरगुजा के ऐतिहासिक स्थलो में सबसे प्राचीन है।
उदयपुर के निकट राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 130 बिलासपुर-अंबिकापुर से लगा हुआ रामगढ़ का पहाड़ है।
इसे रामगिरि भी कहा जाता है, रामगढ पर्वत टोपी की आकृति का है।
इसे रामगिरि भी कहा जाता है, रामगढ पर्वत HAT (टोपी) की सकल का है।
रामगढ भगवान राम एवं महाकवि कालीदास से सम्बन्धित होने के कारण शोध का केन्द्र बना हुआ है।
एक प्राचीन मान्यता के अनुसार भगवान राम भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ वनवास काल मे निवास किए थे. यहीं पर राम के तापस वेश के कारण जोगीमारा, सीता के नाम पर सीता बेंगरा एवं लक्ष्मण के नाम पर लक्ष्मण गुफा भी स्थित है।
कहते हैं, यह महाकवि कालिदास के मेघदूत में वर्णित वही रामगिरि पर्वत है, जहाँ उन्होंने बैठकर अपनी कृति मेघदूत की रचना की थी।
मेघदूत का छत्तीसगढ़ी अनुवाद मुकुटधर पाण्डेय के द्वारा किया गया है।
इनकी खोज कर्नल आउसले ने की।
यहाँ पर विश्व की प्राचीनतम गुफा नाट्य शाला स्थित है. इसे रामगढ नाट्य शाला कहा जाता है।
यहां से निकलती है चन्दन मिट्टी
रामगढ़ की पहाड़ी में चंदन गुफा भी है। यहां से लोग चंदन मिट्टी निकालते हैं और उसका उपयोग धार्मिक कार्यों में किया जाता है।
इतिहासविद रामगढ़ की पहाड़ियों को रामायण में वर्णित चित्रकूट मानते हैं।

एक अन्य मान्यता के अनुसार महाकवि कालिदास ने जब राजा भोज से नाराज हो उज्जयिनी का परित्याग किया था, तब उन्होंने यहीं शरण ली थी और महाकाव्य मेघदूत की रचना इन्हीं पहाड़ियों पर बैठकर की थी।

सीताबोगरा (सरगुजा)

                                                                          सीताबोगरा (सरगुजा)

विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला के रूप में विख्यात जो रामगढ़ के पहाड़ी में स्थित है।
अंबिकापुर-बिलासपुर मार्ग पर स्थित रामगढ़ के जंगल में तीन कमरों वाली यह गुफ़ा देश की सबसे पुरानी नाटयशाला है।
सीताबेंगरा गुफ़ा पत्थरों में ही गैलरीनुमा काट कर बनाई गयी है।
यह गुफ़ा प्रसिद्ध जोगीमारा गुफ़ा के नजदीक ही स्थित है। सीताबेंगरा गुफ़ा का महत्त्व इसके नाट्यशाला होने से है।
माना जाता है कि यह एशिया की अति प्राचीन नाट्यशाला है। इसमें कलाकारों के लिए मंच निचाई पर और दर्शक दीर्घा ऊँचाई पर है। प्रांगन 45 फुट लंबा और 15 फुट चौडा है।
इस नाट्यशाला का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का माना गया है, क्यूँकि पास ही जोगीमारा गुफ़ा की दीवार पर सम्राट अशोक के काल का एक लेख उत्कीर्ण है।
ऐसे गुफ़ा केन्द्रों का मनोरंजन के लिए प्रयोग प्राचीन काल में होता था।
इतिहास
रामगढ़ शैलाश्रय के अंतर्गत सीताबेंगरा गुहाश्रय के अन्दर लिपिबद्ध अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर इस नाट्यशाला का निर्माण लगभग दूसरी-तीसरी शताब्दी ई. पू. होने की बात इतिहासकारों एवं पुरात्त्वविदों ने समवेत स्वर में स्वीकार की है।
सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि कालिदास की विख्यात रचना ‘मेघदूत’ ने यहीं आकार लिया था। यह विश्वास किया जाता है कि यहाँ वनवास काल में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ पहुंचे थे। सरगुजा बोली में ‘भेंगरा’ का अर्थ कमरा होता है। गुफ़ा के प्रवेश द्वार के समीप खम्बे गाड़ने के लिए छेद बनाए हैं तथा एक ओर श्रीराम के चरण चिह्न अंकित हैं। कहते हैं कि ये चरण चिह्न महाकवि कालिदास के समय भी थे। कालीदास की रचना ‘मेघदूत’ में रामगिरि पर सिद्धांगनाओं (अप्सराओं) की उपस्थिति तथा उसके रघुपतिपदों से अंकित होने का उल्लेख भी मिलता है।

संचालन
यह विश्वास किया जाता है कि गुफ़ा का संचालन किसी ‘सुतनुका देवदासी’ के हाथ में था। यह देवदासी रंगशाला की रूपदक्ष थी।
देवदीन की चेष्टाओं में उलझी नारी सुलभ हृदया सुतनुका को नाट्यशाला के अधिकारियों का ‘कोपभाजन’ बनना पड़ा और वियोग में अपना जीवन बिताना पड़ा। रूपदक्ष देवदीन ने इस प्रेम प्रसंग को सीताबेंगरा की भित्ति पर अभिलेख के रूप में सदैव के लिए अंकित कर दिया। यह भी कहा जाता है कि इस गुफ़ा में उस समय क्षेत्रीय राजाओं द्वारा भजन-कीर्तन और नाटक आदि करवाए जाते रहे होंगे।
स्थापत्य
सीताबेंगरा गुफ़ा का निर्माण पत्थरों में ही गैलरीनुमा कटाई करके किया गया है।
यह 44 फुट लम्बी एवं 15 फुट चौड़ी है। दीवारें सीधी तथा प्रवेश द्वार गोलाकार है। इस द्वार की ऊंचाई 6 फ़ीट है, जो भीतर जाकर 4 फ़ीट ही रह जाती हैं। नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों को छेद दिया गया है।
गुफ़ा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर सीड़ियाँ बनाई गयी हैं।
सीताबेंगरा गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए दोनो तरफ़ सीड़ियाँ बनी हुई हैं।
प्रवेश द्वार से नीचे पत्थर को सीधी रेखा में काटकर 3-4 इंच चौड़ी दो नालियाँ जैसी बनी हुई है।
इसमें सीढ़ीदार दर्शक दीर्घा गैलरीनुमा ऊपर से नीचे की और अर्द्धाकार स्वरूप में चट्टान को इस तरह काटा गया है कि दर्शक-दीर्घा में बैठकर आराम से कार्यक्रमों को देखा जा सके।
गुफ़ा के बाहर दो फुट चौड़ा गडढ़ा भी है, जो सामने से पूरी गुफ़ा को घेरता है।
मान्यता है कि यह लक्ष्मण रेखा है। इसके बाहर एक पांव का निशान भी है।
इस गुफ़ा के बाहर एक सुरंग है। इसे ‘हथफोड़ सुरंग’ के नाम से जाना जाता है।
इसकी लंबाई क़रीब 500 मीटर है। यहाँ पहाडी में राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की 12-13वीं सदी की प्रतिमा भी है। चैत्र नवरात्र के अवसर पर यहाँ मेला लगता है। सीताबेंगरा गुफ़ा को ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’ द्वारा संरक्षित किया गया है।
अभिलेख
सीताबेंगरा गुफ़ा के ब्राह्मी लिपि में लिखे हुए अभिलेख का आशय है-
हृदय को देदीप्यमान करते हैं स्वभाव से महान् ऐसे कविगण
रात्रि में वासंती से दूर हास्य एवं विनोद में अपने
को भुलाकर चमेली के फूलों की माला का आलिंगन करता है।
दूसरे शब्दों में यह रचनाकार की परिकल्पना है कि ‘मनुष्य कोलाहल से दूर एकांत रात्रि में नृत्य, संगीत, हास्य-परिहास की दुनिया में स्वीकार स्वर्गिक आनन्द में आलिप्त हो। भीनी-भीनी खुशबू से मोहित हो, फूलों से आलिंगन करता हो।’
बादलों की पूजा
सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि कालीदास ने विख्यात रचना ‘मेघदूत’ यहीं लिखी थी।
कालीदास ने जब उज्जयिनि का परित्याग किया था तो यहीं आकर उन्होंने साहित्य की रचना की थी। इसलिए ही इस जगह पर आज भी हर साल आषाढ़ के महीने में बादलों की पूजा की जाती है।
भारत में संभवत: यह अकेला स्थान है, जहाँ कि बादलों की पूजा करने का रिवाज हर साल है।
इसके लिए हर साल प्रशासन के सहयोग से कार्यक्रम का आयोजन होता है।

इस पूजा के दौरान देखने में आता है कि हर साल उस समय आसमान में काले-काले मेघ उमड़ आते हैं।

जोगीमारा गुफा (सरगुजा) –
इसे छ.ग. की अजन्ता के रूप में विख्यात, मौर्यकालीन गुफा चित्र के लिए जाना जाता है।
एँ अम्बिकापुर (सरगुजा ज़िला) से 50 किलोमीटर की दूरी पर रामगढ़ स्थान में स्थित है।
यहीं पर सीताबेंगरा, लक्ष्मण झूला के चिह्न भी अवस्थित हैं।
इन गुफ़ाओं की भित्तियों पर विभिन्न चित्र अंकित हैं। ये शैलकृत गुफ़ाएँ हैं, जिनमें 300 ई.पू. के कुछ रंगीन भित्तिचित्र विद्यमान हैं।
इस गुफा में ब्राह्मी लिपि का अभिलेख है।
इस गुफा में देवदासी सुतलुका के चित्र है।

जोगीमारा गुफा (सरगुजा)
इस गुफा की खोज कर्नल आउस्ले नें किया था।

निर्माण काल
चित्रों का निर्माण काल डॉ. ब्लाख ने यहाँ से प्राप्त एक अभिलेख के आधार पर निश्चित किया है।
सम्राट अशोक के समय में जोगीमारा गुफ़ाओं का निर्माण हुआ था।
ऐसा माना जाता है कि जोगीमारा के भित्तिचित्र भारत के प्राचीनतम भित्तिचित्रों में से हैं।
विश्वास किया जाता है कि देवदासी सुतनुका ने इन भित्तिचित्रों का निर्माण करवाया था।
चित्रों की विषयवस्तु
चित्रों में भवनों, पशुओं और मनुष्यों की आकृतियों का आलेखन किया गया है।
एक चित्र में नृत्यांगना बैठी हुई स्थिति में चित्रित है और गायकों तथा नर्तकों के खुण्ड के घेरे में है।
यहाँ के चित्रों में झाँकती रेखाएँ लय तथा गति से युक्त हैं। चित्रित विषय सुन्दर है तथा तत्कालीन समाज के मनोविनोद को दिग्दर्शित करते हैं।
इन गुफ़ाओं का सर्वप्रथम अध्ययन असित कुमार हलधर एवं समरेन्द्रनाथ गुप्ता ने 1914 में किया था।
प्रस्तुतिकरण
जोगीमारा गुफ़ाओं के समीप ही सीताबेंगरा गुफ़ा है।
इस गुफ़ा का महत्त्व इसके नाट्यशाला होने से है।
कहा जाता है कि यह एशिया की अतिप्राचीन नाट्यशाला है।
भास के नाटकों के समय निर्धारण में यह पुराता देवदीन पर प्रेमासक्तत्त्विक खोज महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
क्योंकि नाटक प्रविधि को ‘भास’ ने लिखा था तथा उसके नाटकों में चित्रशालाओं के भी सन्दर्भ दिये हैं।
यह विश्वास किया जाता है कि गुफ़ा का संचालन किसी सुतनुका देवदासी के हाथ में था।
यह देवदासी रंगशाला की रूपदक्ष थी। देवदीन की चेष्टाओं में उलझी नारी सुलभ हृदया सुतनुका को नाट्यशाला के अधिकारियों का ‘कोपभाजन’ बनना पड़ा और वियोग में अपना जीवन बिताना पड़ा।

रूपदक्ष देवदीन ने इस प्रेम प्रसंग को सीताबेंगरा की भित्ति पर अभिलेख के रूप में सदैव के लिए अंकित करा दिया।

मैनपाट (सरगुजा)
मैनपाट अम्बिकापुर से 75 किलोमीटर दुरी पर है इसे छत्तीसगढ का शिमला कहा जाता है।
इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 1084 मीटर है। यहां पर कई दर्शनीय स्थल हैं।
मेहता प्वाइंट, टाइगर प्वाइंट, ईको प्वाइंट तथा फिस प्वाइंट यही पर स्थित है।
यहां पर आलू अनुसंधान केन्द्र स्थित है।
मैनपाट में ही 1961 में भारत नें तिब्बत शरणार्थियों को बसाया था।
छ.ग. शासन की पुलिस एकेडमी खोलनें का प्रस्ताव है।
प्राकृतिक सम्पदा से भरपुर यह एक सुन्दर स्थान है। यहां सरभंजा जल प्रपात, टाईगर प्वांइट तथा मछली प्वांइट प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
शरभंजा जलप्रपात यहीं पर है। मैनपाट से ही मांडनदी का उद्गम होता है।
यहीं से मतिरिंगा पहाड़ी से रिहंद नदी का उद्गम होता है।
यह कालीन और पामेरियन कुत्तो के लिये प्रसिद्ध है।
Ful Verma

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महेशपुर में शिव मंदिरमहेश्पुर
महेश्पुर, उदयपुर से उत्तरी दिशा में 08 किमी. की दूरी पर स्थित है। उदयपुर से केदमा मार्ग पर जाना पड्ता है।

इसके दर्शनीय स्थल प्राचीन शिव मंदिर (दसवीं शताब्दी), छेरिका देउर के विष्णु मंदिर (10वीं शताब्दी), तीर्थकर वृषभ नाथ प्रतीमा (8वीं शताब्दी), सिंहासन पर विराजमन तपस्वी, भगवान विष्णु-लक्ष्मी मूर्ति, नरसिंह अवतार, हिरण्यकश्यप को चीरना, मुंड टीला (प्रहलाद को गोद मे लिए), स्कंधमाता, गंगा-जमुना की मूर्तिया, दर्पण देखती नायिका और 18 वाक्यो का शिलालेख हैं।

देवगढ़

अम्बिकापुर से लखंनपुर 28 किमी. की दूरी पर है एवं लखंनपुर से 10 किमी. की दूरी पर देवगढ स्थित है।
देवगढ प्राचीन काल में ऋषि यमदग्नि की साधना स्थलि रही है।
इस शिवलिंग के मध्यभाग पर शक्ति स्वरुप पार्वती जी नारी रूप में अंकित है।
इस शिवलिंग को शास्त्रो में अर्द्ध नारीश्वर की उपाधि दी गई है।
इसे गौरी शंकर मंदिर भी कहते है।
देवगढ में रेणुका नदी के किनारे एकाद्श रुद्ध मंदिरों के भग्नावशेष बिखरे पडे है।
देवगढ में गोल्फी मठ की संरचना शैव संप्रदाय से संबंधित मानी जाती है।

इसके दर्शनीय स्थल, मंदिरो के भग्नावशेष, गौरी शंकर मंदिर, आयताकार भूगत शैली शिव मंदिर, गोल्फी मठ, पुरातात्विक कलात्मक मूर्तियां एवं प्राकृतिक सौंदर्य है।

कैलाश गुफाकैलाश गुफा
अम्बिकापुर नगर से पूर्व दिशा में 60 किमी. पर स्थित सामरबार नामक स्थान है, जहां पर प्राकृतिक वन सुषमा के बीच कैलाश गुफा स्थित है।
इसे परम पूज्य संत रामेश्वर गहिरा गुरू जी नें पहाडी चटटानो को तराशंकर निर्मित करवाया है।
महाशिवरात्रि पर विशाल मेंला लगता है।

इसके दर्शनीय स्थल गुफा निर्मित शिव पार्वती मंदिर, बाघ माडा, बधद्र्त बीर, यज्ञ मंड्प, जल प्रपात, गुरूकुल संस्कृत विद्यालय, गहिरा गुरू आश्रम है।

ठिनठिनी पत्थर
दारिमा में टिन टिनी पत्थर
अम्बिकापुर नगर से 12 किमी. की दुरी पर दरिमा हवाई अड्डा हैं।
दरिमा हवाई अड्डा के पास बडे – बडे पत्थरो का समुह है।
इन पत्थरो को किसी ठोस चीज से ठोकने पर आवाजे आती है। सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि ये आवाजे विभिन्न धातुओ की आती है। इनमे से किसी – किसी पत्थर खुले बर्तन को ठोकने के समान आवाज आती है।
इस पत्थरो मे बैठकर या लेटकर बजाने से भी इसके आवाज मे कोइ अंतर नही पडता है।
एक ही पत्थर के दो टुकडे अलग-अलग आवाज पैदा करते है।

इस विलक्षणता के कारण इस पत्थरो को अंचल के लोग ठिनठिनी पत्थर कहते है।

सेदम जल प्रपात
अम्बिकापुर- रायगढ मार्ग पर अम्बिकापुर से 45 कि.मी की दूरी पर सेदम नाम का गांव है। इसके दक्षिण दिशा में दो कि॰मी॰ की दूरी पर पहाडियों के बीच एक सुन्दर झरना प्रवाहित होता है। इस झरना के गिरने वाले स्थान पर एक जल कुंड निर्मित है।
यहां पर एक शिव मंदिर भी है। शिवरात्री पर सेदम गांव में मेला लगता है।

इस झरना को राम झरना के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर्यटक वर्ष भर जाते हैं।

लक्ष्मणगढ
अम्बिकापुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर लक्ष्मणगढ स्थित है। यह स्थान अम्बिकापुर – बिलासपुर मार्ग पर महेशपुर से 03 किलोमीटर की दूरी पर है।
ऐसा माना जाता है कि इसका नाम वनवास काल में श्री लक्ष्मण जी के ठहरने के कारण पडा।
य़ह स्थान रामगढ के निकट ही स्थित है।
यहां के दर्शनीय स्थल शिवलिंग (लगभग 2 फिट), कमल पुष्प, गजराज सेवित लक्ष्मी जी, प्रस्तर खंड शिलापाट पर कृष्ण जन्म और प्रस्तर खंडो पर उत्कीर्ण अनेक कलाकृतिय़ां है।

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महामाया मन्दिर
सरगुजा जिले के मुख्यालय अम्बिकापुर के पूर्वी पहाडी पर प्राचिन महामाया देवी का मंदिर स्थित है।
इन्ही महामाया या अम्बिका देवी के नाम पर जिला मुख्यालय का नामकरण अम्बिकापुर हुआ।
एक मान्यता के अनुसार अम्बिकापुर स्थित महामाया मन्दिर में महामाया देवी का धड स्थित है इनका सिर बिलासपुर जिले के रतनपुर के महामाया मन्दिर में है।
इस मन्दिर का निर्माण महामाया रघुनाथ शरण सिहं देव ने कराया था।

चैत्र व शारदीय नवरात्र में विशेष रूप अनगिनत भक्त इस मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करते है।

तकिया
अम्बिकापुर नगर के उतर-पूर्व छोर पर तकिया ग्राम स्थित है इसी ग्राम में बाबा मुराद शाह, बाबा मुहम्मद शाह और उन्ही के पैर की ओर एक छोटी मजार उनके तोते की है यहां पर सभी धर्म के एवं सम्प्रदाय के लोग एक जुट होते हैं मजार पर चादर चढाते हैं और मन्नते मांगते है बाबा मुरादशाह अपने “मुराद” शाह नाम के अनुसार सबकी मुरादे पूरी करते हैं।
इसी मजार के पास ही एक देवी का भी स्थान है इस प्रकार इस स्थान पर हिन्दू देवी देवता और मजार का एक ही स्थान पर होना धार्मिक एवं सामाजिक समन्वय का जीवंत उदाहरण है।

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